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उत्तराखण्ड की राजनीती में सक्रिय नेताओं को दक्षिण भारत के नेताओं से सीखने का सन्देश

 मदन मोहन ढौंडियाल की फेस बुक वाल से 

उत्तराखण्ड थर्ड फ्रण्ट ,उत्तराखण्ड हिमालयी राज्य के उन नेताओं और जनप्रतिनिधियों से प्रश्न करता है , क्या उनमे कोई ऐसा है जो , तमिलनाडू  की स्वर्गीय जयललिता की तरह समाज के लिए समर्पित रहा हो। शायद आज की तारीख में कोई भी ऐसा नहीं है , जिसने अपने सुख के अलावा दूसरों के दुखों में सहभागिता निभाई हो।

तीन वर्ष बाद राज्य अस्तित्व के दो दशक पूरे कर लेगा ,लेकिन कोई भी नेता उत्तराखण्ड की जनता के दिलों में राज करने वाला नहीं पैदा हुआ है। उत्तराखण्ड की पवित्र धरती पर अपवित्र नेताओं का जन्म लेना एक अनोखी विडम्बना है। घोटालों में स्वर्गीय जय ललिता का नाम भी रहा है और वे इसके लिए जेल भी गयी । उसके बावजूद उन्होंने जमीन से जुड़ कर ,बहुत कमजोर वर्ग का दामन थाम कर ,तमिलनाड की जनता के दिलों पर राज किया।

इसका उदाहरण आज दुनिया ने उनके अन्तिम संस्कार के समय अपनी आँखों से देख ही लिया है। उत्तराखण्ड के लखनऊवा प्रकार के नेताओं को ध्यान से अब चिन्तन करने का समय है , क्या वे इसी प्रकार घोटालों की दुनिया में फंसे रहेंगे या , उत्तराखंड के लोगों का बुरे समय में साथ भी देंगे, ताकि वे दिलों में राज करके पवित्र भूमि में जन्म लेने का ऋण चुका सकें।

लोकसभा चुनावों में उनको मोदी नाम की बैसाखी , क्षेत्रवाद के नारों , पहाड़ियों को प्रवासी व स्थानीय में बांटने के जहर , पार्टीवाद , जातिवाद के जहर आदि ने संसद तक तो पहुंचा दिया लेकिन लोगों के दिलों तक पहुँचने में उन्हें अभी बहुत समय लगेगा और शायद इस जन्म में तो मुश्किल है।

राज्य के वयोवृद्ध नेता श्री नारायण दत्त तिवारी जी ने जहाँ उत्तराखण्ड के ह्रदय स्थल गैरसैण को नहीं देखा है , (जो शहीदों का पवित्र स्थल रहा है ) तो दूसरी तरफ बीजेपी के अधिकांश नेताओं का तराई तुष्टीकरण , वोटबैंक के चक्कर में उत्तराखण्ड राज्य को बनाने वाले शहीदों की आत्मा का तिरष्कार कर रहा है । उनका गैरसैण से मोह भँग होने का एक ही कारण है कम मेहनत और अधिक राजनीतिक लाभ ।

उत्तराखण्ड थर्ड फ्रण्ट तराई के सभी वोटरों से अनुरोध करता है, इस बार गैरसैण बिरोधियों को वोट न दें , क्योंकि गैरसैण नए शहर के सृजन से युवाओं को रोजगार प्राप्त होगा ,पलायन रुकेगा और सस्ती लोकप्रियता के भूखे जहर फ़ैलाने वाले नेताओं को हानि होगी।

मैं जयललिता जैसे दक्षिण भारतीय नेताओं को नमन करता हूँ जिन्होंने दक्षिण में नए शहरों का निर्माण करके युवाओं को रोजगार के रास्ते खोले थे। उनमे भारत के स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री नरसिंहा राव , वर्तमान राजनीती में सक्रिय श्री चिदंबरम और अन्य कई के नाम प्रमुख हैं। वे घोटाले भी करते थे लेकिन अपने लोगों को भी उन्होंने खूब सुविधाएँ दीं , और अपने राजनीतिक अस्तित्व को वे बना कर रखे रहे।

वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के नेताओं ने घोटाले करके देहरादून और देश के अन्य शहरों में अपनी काली कमाई को लगाया , जिस पर राज्य के गरीबों का अधिकार था। अगर वे नेता फिर दुबारा जनता के सम्मुख मायावी जाल फेंक कर फिर सत्ता प्राप्त करते हैं तो यह राज्य की जनता का दुर्भाग्य होगा। उत्तराखंड की राजनीतिक गतिविधियों से देश का विकास व सुरक्षा जुड़े हैं। चर्चा जारी रहेगी , उत्तराखण्ड से राजनीतिक प्रदूषण को दूर करने में उत्तराखंड थर्ड फ्रंट अपनी भूमिका निभाता रहेगा। जय भारत जय उत्तराखंड।

devbhoomimedia

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