गाहे बगाहे वे अपने मन की बात सोशल मीडिया द्वारा जनता तक पहुंचते रहे हैं हरदा
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : राजनीति में तमाम झंझावतों को झेलते हुए कैसे जीवित रहा जाता है यह बात उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के बाद यदि सीखना है तो उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से सीखा जा सकता है। दोनों ही नेताओं के भीतर की नेतृत्व क्षमता और विपरीत परिस्थियों में राजनीतिक क्षितिज़ पर छाए रहने की क्षमता काबिलेतारीफ है। वह भी तब जब हवा विपरीत बह रही हो। पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी तो दुनिया से रुख़्सत हो गए हैं लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत राजनीती में प्रवेश करने वाले नए पीढ़ी के नेताओं के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। भले ही राजनीतिज्ञ उनके एकला चलो की नीति को कोसते रहें लेकिन उनके जज्बे और नेतृत्व क्षमता की वे दबे मुंह प्रशंसा करने से नहीं हिचकिचाते हैं। इसी लिए वे कहते हैं राजनीती में कैसे जीना है यह कोई हरीश रावत से सीखे।
हरीश रावत सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं और गाहे बगाहे वे अपने मन की बात सोशल मीडिया के द्वारा जनता तक पहुंचते भी रहे हैं। अभी वे अपने गांव मोहनरी में हैं और अपने घर के पास वाले पठाल वाले घर की छत पर बैठ कर वे लोगों की मानसिकता और अपने गांव के पास चीड़ के जंगल का सॉल्यूशन खोज रहे हैं , इसी को लेकर उन्होने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की है …..
मैं परसों फिर अपने गांव मोहनरी आया हूं। जौनपुर के कुछ गांवों में जाने के बाद विशेष तौर पर गैड़ के खेतों को देखने व खेती के विषय में लोगों से बातचीत करने के बाद मैं अपने गांव में फिर उस मॉडल को तलाश रहा हूं जो हमारे जौनपुर-रंवाई घाटी के लोग अपने गांव में अपना रहे हैं। मैं पिछले डेढ़ साल से इस प्रयास में लगा हूं। मैं राजनीति से हटकर के कुछ दिन जब अपनी जिंदगी की फिलॉसफी ढूंढने की कोशिश करता हूं तो मुझे उसमें अपना गांव ही नजर आता है और मैं चाहता हूं कि जिस समय तक मेरे हाथ-पांव चल रहे हैं मैं अपने गांव में अपने लिये यह मॉडल तैयार कर सकूं।
आख़िर राजनीति से एक दिन सबको निवृत होना है। राजनीति हो, राजकीय सेवाएं या कोई दूसरा काम हो कभी न कभी धरती मां सबको बुलाती है और समय पर हम उसके बुलावे को स्वीकार करके आ जाएं तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिये कुछ करके भी जा सकते हैं। जिस तरीके से हमारे मां-बाप हमारे लिये बहुत कुछ करके गये उसी तरह हम भी कुछ करके जाएं।
लेकिन मुझे कुछ चीजों का साॅल्यूशन मिल रहा है तो दो चीजों का साॅल्यूशन नहीं मिल पा रहा है। जो बड़ी क्रिटिकल हैं। एक तो लोगों की मानसिकता का साॅल्यूशन नहीं मिल पा रहा है और दूसरा जो गांव में ये दैत्य चीढ़ घुस आया है इसका साॅल्यूसन नहीं मिल पा रहा है, इसके लिये मैंने “मेरा वृक्ष-मेरा धन योजना” प्रारंभ की थी, इसको किस तरीके से सस्टेन किया जाय यक्ष प्रश्न है। लेकिन मुझे लगता है कि यह लोगों की मानसिकता के ऊपर छा गया है।