FRI में होगा तीन अप्रैल से होगा 19 वां राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन
CFC -2017
विश्व के 53 राष्ट्रों में से 39 राष्ट्र करेंगे भागीदारी
भारत में दूसरी बार आयोजित हो रहा है राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन
राजेन्द्र जोशी
देहरादून । वानिकी के लिए वर्तमान समय विश्वभर में सबसे कठिन समय है। जहाँ एक तरफ ग्लोबल टेम्पटरेचर बढ़ रहा है वहीँ इससे जैव विविधता भी प्रभावित हो रही है। विश्वभर में वनों की कुछ काम हुई है लेकिन अभी भी सँभलने का मौक़ा है,यह कहना है भारतीय वन अनुसन्धान संस्थान के महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला का। उन्होंने कहा वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कुछ नतीजे तो जान पाएं हैं लेकिन कुछ आज तक नहीं जान पाये। उनका कहना है जलवायु परिवर्तन से वैश्विक तापमान 4 डिग्री ऊपर तक जा सकता है, इससे वानिकी पारिस्थितिकी में भी परिवर्तन है। इससे पशुओं की जाति के साथ- साथ कई वनस्पतियां तक भी समाप्त हो सकती हैं। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसन्धान व उसके परिणामों से ही हमें जानकारी मिल सकेगी।
इन्ही सब विषयों को लेकर वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में 19वां राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन आयोजित होगा। यह सम्मेलन 3 अप्रैल से शुरु होगा। पांच दिवसीय इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन वन अनुसंधान संस्थान द्वारा पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार तथा राष्ट्रमंडल वानिकी संगठन के सहयोग से किया जा रहा है। भारत में यह सम्मेलन दूसरी बार हो रहा है, इससे पहले 1968 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन सम्मेलन हुआ था।
एफआरआई में आयोजित पत्रकार वार्ता में महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला ने कहा कि राष्ट्रमंडल वानिकी संगठन (यू.के.) विश्व की सबसे बड़ा वानिकी संगठन है, जो विश्व के वनों तथा जन-आजीविका में उनके पर्याप्त योगदान के लिए सतत् प्रबंधन तथा संरक्षण को बढावा देता हैं। इससे पूर्व भारत ने 1968 मे नई दिल्ली में 9वीं सी.एफ.सी की मेजबानी की थी तथा यह दूसरी बार 19वीं सी.एफ.सी. की मेजबानी करेगा।
वैज्ञानिक, शैक्षणिकविद, वन अधिकारी, मंत्रालयों के प्रतिनिधि उद्योगों, शोध एवं संरक्षण एजेंसियों के देश-विदेश के लगभग 500 प्रतिनिधि इस सम्मेलन में सहभागिता करेंगे। सी.एफ.सी.-2017 की विषयवस्तु संयुक्त राष्ट्र संघ के एची उद्देश्यों पर आधारित ’समृद्वि एवं भावी पीढी हेतु वन’ है जिसमें विविधता तथा सतत् विकास लक्ष्यों के ज्वलंत मुद्दों जैसे-जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन; वनों से जीविकोपार्जन तथा आर्थिक सुरक्षा; विविध, बहु-उपयोग तथा सतत् कृषि; वानिकी में सुशासन; वन तथा जलवायु परिवर्तन; तथा वन एवं जल को प्राथमिकता दी गई है।
उत्तराखण्ड के राज्यपाल डा. के.के. पॉल 3 अप्रैल को प्रातः 9.30 बजे इस सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव अजय नारायण झा विशिष्ट अतिथि होंगे। वन महानिदेशक एवं विशेष सचिव डा. एस.एस. नेगी; अतिरिक्त वन महानिदेशक, अनिल कुमार; अतिरिक्त महानिदेशक वन्यजीव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार; महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, डा. एस.सी. गैरोला; निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून; निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून; महानिदेशक, एफ.एस.आई, देहरादून तथा पर्यावरण वन जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण, स्थानीय शोध के वैज्ञानिक तथा शैक्षणिक एवं वानिकी संगठन भी सहभागिता करेंगे।
सम्मेलन के दौरान चार पूर्ण सत्र तथा 21 तकनीकी सत्र चलाए जाएंगे, जो वनो की सामाजिक-आर्थिक संभावनाओं, संसाधन आंकलन एवं अन्वेषण, आर्थिक मूल्यांकन, वन उत्पादों का जैव संरक्षण, वन उत्पाद विविधीकरण, वन्य क्षेत्र से बाहर वृक्ष; शहरी वानिकी एवं भूदृश्य प्रबंधन तथा नीति मध्यस्थता पर आधारित होंगे। ’राष्ट्रमंडल सदस्यों तथा अन्य में ’अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध कार्यान्वयन में वानिकी की भूमिका’ पर विचार विमर्श हेतु एक वैश्विक वानिकी निर्वाचित सभा भी होगी। संबंधित विषवस्तुओं पर राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के शोध एवं विकास कार्यकलाप प्रदर्शित करने हेतु एक अलग पोस्टर सत्र भी चलेगा। हस्तशिल्प तथा अन्य हस्त निर्मित उत्पादष् स्वयं समूहों के हर्बल औषधि उत्पाद, एन.जी.ओ., कारीगर, कार्पोरेट मार्केटिंग संघ के उत्पाद आदि की तीन दिनों तक एक प्रदर्शनी लगेगी जिसमे ये उत्पाद बिक्री हेतु उपलब्ध होंगे। सी.एफ.सी.-2017 से उपयुक्त संस्तुतियां आने की आशा है जिससे सदस्य देशों तथा सभी संबंधित सदस्य देशों द्वारा कार्यनीति, योजना, नीति निर्धारण तथा उचित कार्यवाही हेतु एक मार्गदर्शिका तय हो सकेगी।