कांग्रेस के बागियों को टिकट पर पहाड़ से मैदान तक भाजपा में भारी असंतोष
-
कोपभवन में गए नाराज कई पुराने दिग्गज
-
बागेश्वर में भाजपा की कार्यकारिणी का सामूहिक इस्तीफा
-
कांग्रेस के बागियों को टिकट, पार्टी वालों की पूछ नहीं
-
प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी उपेक्षा से नाराज
देहरादून : भाजपा की प्रत्याशी सूची के विरोध में पहाड़ से लेकर मैदान तक असंतोष की चिंगारी भड़क गई है। कांग्रेस के बागियों और बाहरियों का भाजपा में बढ़ते कुनबे से नाराज कई पुराने दिग्गज कोपभवन में चले गए हैं। बागियों और बाहरियों के लिए टिकट आवंटन के अलग मानक बनाने से गुस्साए दो दर्जन पुराने नेता अपना गुस्सा पार्टी प्लेटफार्म से लेकर स्थानीय स्तर पर निकाल रहे हैं।
वहीँ टिकट घोषित होते ही बागेश्वर भाजपा में बगावत हो गई है। भाजपा जिलाध्यक्ष सहित पूरी कार्यकारिणी ने भूपेश उपाध्याय के समर्थन में इस्तीफा दे दिया है। कपकोट व बागेश्वर दोनों सीटों पर चुनाव लड़ाने का ऐलान किया है। देर शाम अपने आवास में भूपेश उपाध्याय ने यह फैसला लिया। कपकोट से वह खुद चुनाव लड़ेंगे जबकि बागेश्वर सीट पर भी उम्मीदवार खड़ा करेंगे।
प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भूपेश उपाध्याय, भाजपा जिलाध्यक्ष उमा बिष्ट, महामंत्री राजेंद्र उपाध्याय व मथुरा प्रसाद, देवेंद्र गोस्वमी, प्रशांत नगरकोटी, मनीष पांडे, निहारिका कपकोटी, नवीन रावल, दिनेश मेहता सहित दर्जनों कार्यकर्ताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। भाजपा ने कपकोट से बलवंत सिंह भौर्याल व बागेश्वर से चंदन दास को टिकट दिया है।
टिकट कटने से नाराज पार्टी के दावेदारों ने निर्दलीय, पार्टी छोड़ने या फिर केंद्रीय नेतृत्व को अल्टीमेटम भेज दिया है। वहीँ चार भाजपा पूर्व विधायकों के कांग्रेस से संपर्क होने की बात सामने आई है। लगभग आधा दर्जन ऐसे हैं, जो निर्दलीय उतरने की तैयारी कर रहे हैं। नाराज भाजपाइयों को गुस्सा इस बात का है कि यशपाल आर्य जैसे बागियों को पार्टी ज्वाइन करते ही बेटे सहित टिकट दिया जा रहा है, जबकि पार्टी में कई साल से बने रहने के बाद उनका टिकट काटा जा रहा है।
उधर तीनों पूर्व सीएम खंडूड़ी, निशंक और कोश्यारी को दरकिनार कर अभी -अभी भाजपा में आए कांग्रेस के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के मन की सुनी गई। केंद्रीय नेतृत्व की इस रणनीति से राजनीतिक विश्लेषक भी हैरान हैं कि पार्टी का यह दांव कहीं चुनाव में उलटा न पड़ जाए। प्रदेश संगठन में बढ़ते आक्रोश से अब डैमेज कंट्रोल की राह भी आसान नहीं दिख रही।
बागियों व बाहरियों के आने से जहां पूर्व अध्यक्ष तीरथ रावत टिकट कटने से नाराज हैं तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट बागियों को शामिल करने में सहमति नहीं लेने से नाराज बताए जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय नेतृत्व ने टिकट आवंटन में भी भट्ट को कोई तरजीह नहीं दी। बताया जा रहा है कि बागियों के कुछ टिकट रोकने के पक्ष में अजय भट्ट भी थे, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई।
वहीँ अजय भट्ट को यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य के शामिल होने के संबंध में नहीं पूछा गया। उधर, तीरथ सिंह रावत को भले नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की बात हो रही है, लेकिन उनका टिकट काट कर बाहरी सतपाल महाराज को देने की नाराजगी कम नहीं हो रही। पार्टी सूत्रों के मुताबिक बाहरियों और बागियों से नाराजगी को थामने के लिए डैमेज कंट्रोल सेल को सक्रिय कर दिए हैं, लेकिन पार्टी को इस बार दोहरी चुनौती से कैसे निबटना है यह समझ नहीं आ रहा है।
वहीँ टिकट कटने से गुस्साए कुछ लोग तो निर्दलीय या कांग्रेस तक ज्वाइन कर भाजपा को हराने के लिए तैयार हो चुके हैं, जिनको मनाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्रियों व सांसदों और प्रदेश पदाधिकारियों की ड्यूटी लगा दी गई है। वहीँ दूसरा खेमा संघ की पृष्ठभूमि और पुराने नेताओं का है, जिनका टिकट काटने के बाद भी पार्टी से जुड़े रहने उनकी मज़बूरी बन गयी है क्योंकि अन्य पार्टियों में वे एडजस्ट नहीं हो सकते है। यह खेमा ही सबसे अधिक खतरनाक है,ऐेसे पुराने नेता अभी-अभी पार्टी में आये बागियों व बाहरियों को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।