सड़क पर आने को तैयार अंतर्कलह से जूझ रहे भाजपाइयों का आक्रोश

स्वार्थ की राजनीति करने वाले पदाधिकारियों ने खोली भाजपा की पोल
कैसी अनुशासित पार्टी जिसके अंदर नेताओं पर कोई अकुंश नहीं
देहरादून । उत्तराखंड राज्य में भाजपा को प्रचंड जीत हासिल हुई है, इसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता परन्तु जिस तरह से संगठन में नेताओं के बीच आपसी मतभेद उभर रहे हैं, से ऐसा आभास हो रहा है कि आने वाले दिनों में भाजपा नेताओं का यह आक्रोश जनता कि सामने आ जाएगा और भाजपा भी कांग्रेस की तरह सैकड़ों पर अन्तर्कलह से जुझती नजर आ सकती है। इसका अंदाजा भाजपा के जिलाध्यक्ष द्वारा अपनी सरकार द्वारा चलाए जा रहे अतिक्रमण अभियान का समर्थन करने के बजाए अतिक्रमण करने वालों को सरेआम समर्थन देने से आसानी से लगाया जा सकता है।
देहरादून राज्य की अस्थाई राजधानी है और भाजपा देहरादून महानगर अध्यक्ष उमेश अग्रवाल हैं, ऐसे में उनके द्वारा ही होने वाले सडकों पर अतिक्रमण के विरोध में पैरवी करने से भाजपा जो स्वयं को अनुशासित पार्टी मानती है और एक झंडे और एक डंडे की पैरवी करती है, पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक हो जाता है। भाजपा का इस तरह का अन्तर्कलह का उदाहरण एक बार नहीं अपितु कई बार देखने को मिला है परन्तु बाद में विवाद ज्यादा न बढे इसको लेकर आपसी समझौते होने से कुछ समय के लिए उसमें कमी आ जाती है लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि पार्टी में अन्तर्कलह बड़े स्तर पर है और स्वार्थ की राजनीति के चलते फिलहाल अन्तर्कलह को ज्यादा हवा नहीं मिल पा रही है। वास्तव में देखा जाए तो यह हवा का रूख तभी तक थमता नजर आ रहा है जब तक कि ऐसे नेताओं को कोई विकल्प नजर नहीं आता और जैसे ही विकल्प नजर आया तो ऐसे नेताओं को उस दौरान उसे अपनाने में देर नहीं होगी।
राजधानी में बढ़ती जनसंख्या और वाहनों की संख्या से आम आदमी का सडकों पर चलना दूभर सा हो रहा है , ऐसे में अतिक्रमण को हटाए जाने का अधिकांश लोंगों द्वारा स्वागत किया गया परन्तु अपनी ही सरकार के फैसले के खिलाफ भाजपा महानगर अध्यक्ष उमेश अग्रवाल व्यापारियों के पक्ष में खडे हो करके अतिक्रमण हटाने वाले सरकारी अधिकारियों की खिलाफत करने लगे। ऐसा देख कर अधिकारियों के साथ जनता भी हैरान हो रही थी कि राज्य में सरकार भाजपा की है और भाजपा के महानगर अध्यक्ष उमेश अग्रवाल आखिरकार विरोध कर क्या साबित करन चाहते हैं कि अतिक्रमण हटाया जाना सही नहीं है अथवा सरकार व्यापारियों को पीडित कर रही है। व्यापारियों के साथ खडे हो करके अग्रवाल ने सरकारी फरमानों की धज्जियां उडा दी और इसका संदेश जनता में विपरीत गया है। लोगों का मानना है कि अग्रवाल को अतिक्रमण के दौरान अधिकारियों का विरोध और व्यापारियों का साथ नहीं दिया जाना चाहिए था और ऐसा करना पार्टी के हित में नहीं माना जा सकता । इसे अग्रवाल की मज़बूरी कहा जाय या विवशता व्यापारी नेता होने के कारण उन्हें अपनी ही सरकार का विरोध करना पड़ रहा है।
यहां उल्लेख करना आवश्यक होगा कि हाल ही में सम्पन्न हुए राज्य में विधान सभा चुनावों में महानगर अध्यक्ष श्री उमेश अग्रवाल द्वारा काफी समय से धर्मपुर विधान सभा सीट पर चुनाव लडने की तैयारी की गई थी परन्तु ऐन वक्त नगर निगर मेयर द्वारा धर्मपुर विधान सभा सीट पर अपनी दावेदारी ठोक दी । इतना ही नहीं अपने कुछ स्वार्थी शुभचिन्तकों के माध्यम से भाजपा मुख्यालय पर धरने प्रदर्शन करवाए गए और पार्टी छोडने तक की अफवाऐं फैला कर धर्मपुर सीट की टिकट हथियाई और भाजपा नगर अध्यक्ष उमेश अग्रवाल को अपनी हैसियत दिखा दी । इतना ही नहीं चुनाव जीतने के बाद भी विनोद चमोली द्वारा मुख्यमंत्री बनाए जाने का दबाव डाला और मुख्यालय पर प्रदर्शन आदि करवाए परन्तु इस बार पार्टी हाई कमान ने भाजपा विधायक विनोद चमोली की हर धमकी को दरकिनारे कर दिया और आरएसएस समर्पित विधायक को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई। ऐसे एक नहीं अनेको उदाहरण राज्य में मिलने शुरू हो गए है और यदि ऐसी मानसिकता वालों के खिलाफ भाजपा हाई कमान ने तुरन्त ठोस कार्यवाई नहीं की गई तो यह धुंआ आने वाले दिनों में एक आग का दावानल के रूप में उबरेगा जो भाजपा के लि काफी घातक सिद्ध होगा।
बहरहाल, उत्तराखंड राज्य में उपरी तौर पर भले ही भाजपा में सब कुछ ठीक दिखाई पड रहा हो परन्तु वास्तविकता यह है कि राज्य के प्रदेश अध्यक्ष के आदेशों और निर्देशों का नेताओं द्वारा सरेआम धज्जियां उडाई जा रही हैं और उस पर प्रदेश अध्यक्ष को यहां तक कहना पडा है कि जब कोई बात नहीं सुन रहा तो मैं क्या कर सकता हुं। इतना ही नहीं भाजपा नगर अध्यक्ष उमेश अग्रवाल का अपने ही सरकार की कार्यप्रणाली के खिलाफ आवाज उठाना भी पार्टी की कार्यप्रणाली पर उंगली अवश्य उठाता है कि आखिरकार कैसी अनुशासित पार्टी है जिसके अंदर नेताओं पर कोई अकुंश नहीं है। भले ही नेताओं द्वारा नगर अध्यक्ष श्री अग्रवाल के विरोध को बाद में उनकी निजी राय मान कर नजरअंदाज किया जा सकता है परन्तु हकीकत जनता ने अतिक्रमण हटाए जाने के दौरान जनता ने आंखों के सामने देखी है और जनता अब समझने लगी है कि सच्चाई क्या है और जिस अनुशासन के दावे भाजपा करती है, वह अनुशासन नहीं अपितु स्वार्थ की राजनीति है।