#Me Too प्रकरण के बाद प्रदेश आरएसएस संगठन दो फाड़ !
- आरोपी समर्थक गुट अब अपने ही संघी साथियों के खिलाफ!
- कहीं न कहीं संघ में क्षेत्रवाद की बू अब आ रही है नज़र !
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : #Me Too प्रकरण में फंसे भाजपा के प्रदेश संगठन के पूर्व महामंत्री संगठन संजय कुमार के मामले के बाद प्रदेश में आरएसएस संगठन में दो फाड़ हो गए हैं। पूर्व संगठन महामंत्री के समर्थन में आया एक गुट युवती से दुर्व्यवहार और शोषण को तमाम सबूतों के सामने आ जाने के बाद भी जहां आरोपी को बचाने की कसरत में लगा हुआ नज़र आ रहा है तो वहीं दूसरा गुट आरोपी के कृत्यों को संघ विरोधी हरकत मानते हुए इसके विरोध में सामने आ खड़ा हुआ है। आरोपी के समर्थन में आये गुट की कारगुजारियों से कहीं न कहीं संघ में क्षेत्रवाद की बू भी नज़र आ रही है। जिसे किसी भी कीमत पर संघ की रीति -निति और परम्पराओं के साथ नहीं कहा जा सकता है।
मामले में जहाँ आरोपी समर्थक गुट अब अपने ही संघी साथियों के खिलाफ इस तरह के प्रचार पर उतर आया है कि आरएसएस के कुछ लोगों का विरोध वे लोग कर रहे हैं जो वर्तमान में संघ के किसी भी महत्वपूर्ण पदों पर नहीं हैं और वे संघ में महत्वपूर्ण पदों को पाने के किये छटपटा रहे हैं । जबकि वास्तविकता है है कि बीते सप्ताह जितने भी लोग उत्तराखंड में आरएसएस को बचाने की मुहिम मे शामिल थे, वे सभी संघ के प्रमुख जिम्मेदारियां या तो निभा चुके हैं अथवा वर्तमान में निभा रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जितने भी लोग उस दिन बैठक में शामिल रहे थे उनका आज तक का संघ का कार्यकाल शानदार और स्वच्छ रहा है। ऐसे में आरएसएस की मुख्यधारा के कुछ लोगों का यह प्रचार कहीं से भी न्यायोचित नहीं लगता कि वे पदों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
हालाँकि संघ के दूसरे गुट द्वारा संघ प्रमुख डॉ. मोहन राव भागवत जी को लिखे गए पत्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है। संघ प्रमुख को भेजे गए पत्र को हूबहू लिखा जा रहा है जिसमे कहीं भी नहीं कहा गया है कि वे संघ में महत्वपूर्ण पद पाने की इच्छा रखते हैं जबकि उनके द्वारा संघ के महत्वपूर्ण पदों वर्तमान में बैठे लोगों द्वारा संघ की परम्पराओं और रीति – नीतियों का पालन न किये जाने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा है कि संगठन के वर्तमान दायित्ववान कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें अलग-थलग छोड़ दिया गया है। न कार्यक्रमों की सूचना न कोई कोई संपर्क ही उनसे किया जा रहा है। सब कुछ ख़त्म कर दिया गया है। पत्र में कहा गया है कि हम सब लोगों ने डॉ. हेडगेवार जी के मार्ग पर चलते हुए संघ कार्य को ईश्वरीय कार्य मानते हुए अपने जीवन का स्वर्णिम समय संघ कार्य कको दिया। संघ में पुराने कार्यकर्ताओं का सम्मान तथा उनके अनुभवों का उपयोग संगठन हित में करने की परम्परा रही है लेकिन वर्तमान व्यवस्था बिल्कुल विपरीत है। किसी भी कार्यक्रम की सूचना और यहाँ तक कि गुरुदक्षिणा तक की सूचना नहीं दिया जाना पीड़ादायक है।
पत्र में कहा गया है कि जीवन के स्वर्णिम काल संघ को न्योछावर करने के बाद अब हमारे पास संघ के अलावा कोई और सोच नहीं रह गयी है। लिहाजा हम अपनी पीड़ा किससे कहें। वर्तमान कार्यकर्ताओं के कारण अब संगठन जैसी कोई चीज नहीं रह गयी है। जिसकी जो मर्जी आ रही है वह कर रहा है। जिसका नुक्सान वैचारिक प्रतिष्ठान को उठाना पड़ रहा है। यहाँ तक कि अब प्रचारक शब्द पर भी प्रश्न खड़े होने लगे हैं संचार माध्यमों में प्रत्येक दिन संघ की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचाने वाले समाचार आ रहे हैं ,जिससे संघ के लोग व्यथित हैं।